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नज़्म
वो नार भी आख़िर पछताई किस काम का ऐसा पछताना?
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तहज़ीब जहाँ थर्राती है तारीख़-ए-बशर शरमाती है
मौत अपने कटे पर ख़ुद जैसे दिल ही दिल में पछताती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
उखड़ी-उखड़ी बात करे है भूल के अगला याराना
कौन हो तुम किस काम से आए? हम ने न तुम को पहचाना