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नज़्म
तड़ता मुड़ता गिरता पड़ता आगे बढ़ता रहता है
पग पग पर इस का पल पल में पानी चढ़ता रहता है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क हूँ दुनिया में न पूछो मुझ को
देखना हो तो किसी पग पे किसी पेड़ के नीचे जिस की
ज़ाहिद डार
नज़्म
लड़ता मुड़ता गिरता पड़ता आगे बढ़ता रहता है
पग-पग पर इस का पल-पल में पानी चढ़ता रहता है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ये ज़ालिम तीसरा पैग इक अक़ानीमी बिदायत है
उलूही हर्ज़ा-फ़रमाई का सिर्र-ए-तूर-ए-लुक्नत है
जौन एलिया
नज़्म
सबक़ फिर पढ़ सदाक़त का अदालत का शुजाअ'त का
लिया जाएगा तुझ से काम दुनिया की इमामत का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अजब है ये ज़बाँ, उर्दू
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे 'मीर', 'ग़ालिब' का
गुलज़ार
नज़्म
अन-पढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया-ए-इल्म-ओ-दानिश का रास्ता दिखाया