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नज़्म
फ़लक से ताज़ा फलों के ख़ोशे चुरा के भरती थीं पहलुओं में
सफ़ेद पानी के सौ कुएँ यूँ भरे हुए थे
अली अकबर नातिक़
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे