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नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अपने गुलहा-ए-अक़ीदत पेश करती हूँ तुझे
मुख़्तसर ये है मोहब्बत पेश करती हूँ तुझे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ईमान-ओ-मोहब्बत के जल्वे सब नफ़्स के ताबे' हो के रहे
पैमाना-ए-उल्फ़त फेंक दिया पैमान-ए-मोहब्बत भूल गए
सहबा लखनवी
नज़्म
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था