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नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
होंट कँवल अब भी वैसे पर शादाबी कुछ कम कम थी
पक्के फलों का बोझ उठाए जिस्म तना बल खाता था
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
हुई है रूह वो अब जज़्ब-ए-रूह-ए-पाक-ए-अज़ीम
मिला जो ज़ात में उस की जुदा नहीं मिलता
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
कुछ ऐसा रोब हुआ क़ाएम सब उन के जिलौ में भागे थे
हम जैसे भी उन के मल्बूसात में कच्चे-पक्के धागे थे
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
राही मासूम रज़ा
नज़्म
या हमारे कपड़ों के साथ सारे घर में फैल जाते
पक्के फ़र्श पर हमारे कीचड़ भरे पैरों के निशान
ज़ीशान साहिल
नज़्म
मैं भी हूँ अपने वतन से दूर तू भी दूर है
हाँ रज़ा-ए-पाक-ए-यज़्दाँ को यही मंज़ूर है