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नज़्म
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा नैन-सुख और मलमल
चलवन पर्दे फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम पलट आओ गुज़र जाओ या मुड़ कर देखो
गरचे वाक़िफ़ हैं निगाहें कि ये सब धोका है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
उन को पलंग पे बैठे झड़ियों का ख़त उड़ाना
है जिन को अपने घर में याँ लोन तेल लाना