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नज़्म
वो हिकमत नाज़ था जिस पर ख़िरद-मंदान-ए-मग़रिब को
हवस के पंजा-ए-ख़ूनीं में तेग़-ए-कार-ज़ारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मक़्तल में कुछ तो रंग जमे जश्न-ए-रक़्स का
रंगीं लहू से पंजा-ए-सय्याद कुछ तो हो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दहर को पंजा-ए-उस्रत से छुड़ाने दे मुझे
बर्क़ बन कर बुत-ए-माज़ी को गिराने दे मुझे
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
किसी के पंजा-ए-बे-दर्द ही से टूट जाने दो
फिर इस के ब'अद तो बस इक सुकूत-ए-मुस्तक़िल होगा