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नज़्म
तवंगर हिर्ज़ा-कारों को किया दरयूज़ा-गर मुझ को
मगर जब जब किसी के सामने दामन पसारा है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है
मिरी बातों में रंग-ए-पारसाई हो नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हम सब से हर हाल में लेकिन यूँही हाथ पसार मिले
सिर्फ़ उन की ख़ूबी पे नज़र की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सर-निगूँ और शिकस्ता मकानों के मलबे से पुर रास्तों पर
अपने नग़्मों की झोली पसारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बूढ़ा पनवाड़ी उस के बालों में माँग है न्यारी
आँखों में जीवन की बुझती अग्नी की चिंगारी
मजीद अमजद
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
जो मुझ ऐसे हैं रिंद उन को भी ज़ोम-ए-पारसाई है
और इस मज़मून की इक दावत-ए-इफ़्तार आई है