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नज़्म
यूँ सुर्ख़ से तुले हैं ये पपड़ियाँ समोसे
जो इक नज़र भी देखे खाने की बात सोचे
अब्दुल मतीन नियाज़
नज़्म
जमीलुर्रहमान
नज़्म
क़ुमरियाँ शाख़-ए-सनोबर से गुरेज़ाँ भी हुईं
पत्तियाँ फूल की झड़ झड़ के परेशाँ भी हुईं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मसाफ़-ए-ज़िंदगी में सीरत-ए-फ़ौलाद पैदा कर
शबिस्तान-ए-मोहब्बत में हरीर ओ पर्नियाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्द से पाक है हवा बर्ग-ए-नख़ील धुल गए
रेग-ए-नवाह-ए-काज़िमा नर्म है मिस्ल-ए-पर्नियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गिरते हैं इक फ़र्श-ए-मख़मल बनाते हैं जिस पर
मिरी आरज़ूओं की परियाँ अजब आन से यूँ रवाँ हैं
मीराजी
नज़्म
जिन के चंगुल में शब ओ रोज़ हैं फ़रियाद-कुनाँ
मेरे बेकार शब ओ रोज़ की नाज़ुक परियाँ