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नज़्म
ज़मीं कहती है मैं ने प्यार सब को प्यार से बाँटा
हर इक बाली का दाना दाना भी सत्कार से बाँटा
सरदार पंछी
नज़्म
खिंची है क़ौस-ए-क़ुज़ह आसमान पर सर-ए-शाम!
अजीब कैफ़ सा है हैरत-ए-नज़र में निहाँ!