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नज़्म
हमारा फ़ख़्र था फ़क़्र और दानिश अपनी पूँजी थी
नसब-नामों के हम ने कितने ही परचम लपेटे हैं
जौन एलिया
नज़्म
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यूँ तो मुझ से हुईं सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें
अपने टूटे हुए फ़िक़्रों को तो परखा होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद
अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद