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नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
पस्ती-ए-ख़ाक पे कब तक तिरी बे-बाल-ओ-परी
फिर मक़ाम अपना सर-ए-अर्श-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कली पे बेले की किस अदा से पड़ा है शबनम का एक मोती
नहीं ये हीरे की कील पहने कोई परी मुस्कुरा रही है