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नज़्म
जबीं की छूट पड़ती है फ़लक के माह-पारों पर
ज़िया फैली हुई है सारा आलम जगमगाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हवा के लब बर्फ़ीले सुमों में नीले पड़ कर अपनी सदाएँ खो बैठे
पत्तों की बाँहों के सर बे-रंग हुए
परवीन शाकिर
नज़्म
मरमरीं ख़्वाबों की परियों से लिपट कर सो जाओ
अब्र पारों पे चलो, चाँद सितारों में उड़ो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
माह-पारों का हदफ़ ज़ोहरा-जबीनों का शिकार
नग़्मा-पैरा ओ नवासंज ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ हूँ मैं