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नज़्म
चराग़-ए-इल्म रौशन है हक़ीक़त की हवाओं पर
हुकूमत कर रहा है एक गोशे से फ़ज़ाओं पर
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ की तरह देहली की सड़कें हैं दराज़
और तांगा हाँकने वालों पे ज़ाहिर है ये राज़
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ये पहले डर था हम को झाँक कर देखे न हम-साया
ब-जुज़ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दिन में ब-ज़ाहिर कुछ न था खाया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फ़रोग़-ए-माह से क्या जगमगा रही है बहार
गुलों में नूर की शमएँ जला रही है बहार
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
रूह-ए-'सर-सय्यद' से रौशन तेरा मय-ख़ाना रहे
रहती दुनिया तक तिरा गर्दिश में पैमाना रहे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं ने इक दिन ख़्वाब में देखा कि इक मुझ सा फ़क़ीर
गर्दिश-ए-पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का असीर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
उन ही से पूछता हूँ मैं सफ़र करते हैं जो बस में
कि दे देते हो अपनी ज़िंदगी क्यूँ ग़ैर के बस में