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नज़्म
है वक़्त अभी कर के सौदा बेच औने-पौने ये कूड़ा
मौक़ा है यही रौशन कर ले मुस्तक़बिल अपने बच्चों का
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
एक ने दुनिया के पौदे बाग़ में अपने लगाए
एक ने छोड़े दफ़ीने सीम-ओ-ज़र के बे-शुमार
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
अब तो इस बाग़ पे है सब की मोहब्बत की निगाह
जो कि पौदे थे शजर हो गए माशा-अल्लाह