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नज़्म
तू ने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अल्लाह अल्लाह वो पेशानी-ए-सीमीं का जमाल
रह गई जम के सितारों की नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जो तुम्हें जादा-ए-मंज़िल का पता देता है
अपनी पेशानी पर वो नक़्श-ए-क़दम ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी पेशानी-ए-रंगीं में झलकती है जो आग
तेरे रुख़्सार के फूलों में दमकती है जो आग
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ज़ोम में पेशानी-ए-सहरा पे ठोकर मारती
फिर सुबुक-रफ़्तारियों के नाज़ दिखलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नुमायाँ रंग-ए-पेशानी पे अक्स-ए-सोज़-ए-दिल कर दे
तबस्सुम-आफ़रीं चेहरे में कुछ संजीदा-पन भर दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी पेशानी पे झलकेगा मिसाल-ए-बर्क़-ए-तूर
तिफ़्ल का नाज़-ए-शराफ़त और शौहर का ग़ुरूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
काकुल में दरख़्शाँ है ये पेशानी-ए-रक़्साँ
या साया-ए-ज़ुल्मात में है चश्मा-ए-हैवाँ