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नज़्म
दिल ही अफ़्सुर्दा हो जब पेशकश-ए-सहबा क्या
आँख ही जब न रहे दावत-ए-नज़्ज़ारा क्या
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
मक़ाम-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ को तू ने फ़ाश किया
जुमूद-बस्ता ग़ुलामी को पाश-पाश किया
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
बरहमनों की क़दग़नों का ज़ोर पाश-पाश हो
जहाँ में जो अँधेर है उसे शिकस्त-ए-फ़ाश हो