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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तू राज़-ए-कुन-फ़काँ है अपनी आँखों पर अयाँ हो जा
ख़ुदी का राज़-दाँ हो जा ख़ुदा का तर्जुमाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपनी दुनिया आप पैदा कर अगर ज़िंदों में है
सिर्र-ए-आदम है ज़मीर-ए-कुन-फ़काँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पहाड़ों से वो उतरे क़ाफ़िले रोज़ा-गुज़ारूँ के
गया गरमी का 'मौसम और आए दिन बहारों के
मजीद लाहौरी
नज़्म
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें 'मोमिन'-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले
रईस अमरोहवी
नज़्म
वो ज़लज़ले कि पहाड़ों के पैर उखड़ जाएँ
बुलूग़ियत की वो टीसें वो कर्ब-ए-नश्व-ओ-नुमा