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नज़्म
धूप के झुलसे हुए रुख़ पर मशक़्क़त के निशाँ
खेत से फेरे हुए मुँह घर की जानिब है रवाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बर्क़ी चक्कर में चकरा कर चहके तो ख़ुशी से लाल हुए
इक धूम धड़क्की फेरे में सब पैसे इस्ति'माल हुए