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नज़्म
सुब्ह-सवेरे कोयल कोई गीत वहाँ भी गाती है
फूलों की डाली पे चिड़िया बैठ के फिर उड़ जाती है
शबनम कमाली
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
कली से कह रही थी एक दिन शबनम गुलिस्ताँ में
रही मैं एक मुद्दत ग़ुंचा-हा-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रज़ी हैदर गिलानी
नज़्म
सुनो ये तारीख़ कह रही है
बिलाल जैसे ग़ुलाम जिन को महा-दलित से भी पस्त समझा गया 'अरब में
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
जुदा कर के तुझे डाली से अब नीचे गिराता हूँ
हक़ीक़त ये है मैं तुझ को अज़ीज़ों से मिलाता हूँ
नारायण दास पूरी
नज़्म
डाली डाली फूल चुनें फूलों का ढेर लगाएँ
फूलों के फिर हार बना कर सखियों को पहनाएँ
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
सवाल बच्चे ने जो किए थे
जवाब उन का दबी ज़बाँ से वही दिया है जो मुझ को अज्दाद से मिला था