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नज़्म
ना-ख़ुदाओं में अब पीछे कितने बचे हैं
रौशनी और अँधेरे की तफ़रीक़ में कितने लोगों ने आँखें गँवा दीं
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह-ओ-शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू