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नज़्म
जो पानी की छत तोड़ के हम से आन मिले थे
ख़ुशबू जो मिट्टी की कच्ची पोस्त से बाहर कनपटियों तक फैली थी
अब्दुर्रशीद
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ख़ुतूत लिखे गए जो कभी पोस्ट नहीं हुए
कुछ बल्ब जिन को रौशन करके आप अपनी ख़ुद-कुशी