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नज़्म
प्रयाग पे बिछड़ी हुई बहनें जो मिली हैं
पानी की ज़मीं पर भी तो कलियाँ सी खिली हैं
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है