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नज़्म
मुंतशिर कर के फ़ज़ा में जा-ब-जा चिंगारियाँ
दामन-ए-मौज-ए-हवा में फूल बरसाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दरिया पुल पर चलता था पानी में रेलें चलती थीं
लंगूरों की दुम पर अंगूरों की बेलें पकती थीं
गुलज़ार
नज़्म
उजली और पुर-नूर शबीहें रोज़ नमाज़ को आती थीं
मस्जिद के इन ताक़ों में भी क्या क्या दिया फ़रोज़ाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
न रिहाई की पज़ीराई न असीरी ही की शर्म
शहर के शहर का अफ़्साना वो रूहें जो सर-ए-पुल के सिवा