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नज़्म
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कितने माथों के अभी सर्द हैं रंगीन गुलाब
गर्द अफ़्शाँ हैं अभी गेसू-ए-पुर-ख़म कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
शिद्दत-ए-दर्द-ओ-अलम से जब भी घबराता हूँ मैं
तेरे नग़्मों की घनी छाँव में आ जाता हूँ मैं
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
अश्नान निगाहें करती थीं प्रकाश की चढ़ती नद्दी में
आकाश के उभरे तारे थे डूबे हुए कैफ़-ओ-मस्ती में
नज़ीर बनारसी
नज़्म
अर्श मलसियानी
नज़्म
जब किसी के गेसू-ए-पुर-ख़म की सौदाई थी तू
और लब-ए-साहिल पे रौज़ा की तमाशाई थी तू
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
नर्म-रफ़्तारी हो वक़्त-ए-सैर-ए-गुलज़ार-ए-तरब
राह-ए-पुर-ख़ार-ए-अमल में गर्म-रफ़्तारी भी हो
अर्श मलसियानी
नज़्म
ज़िंदगी राहत-ए-जाँ दर्द दिल-ए-ज़ार भी है
बाँझ खेती भी है और किश्त-ए-गुहर-बार भी है