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नज़्म
ठंडी पुर्वा काला बादल बरसा तो बरसता जाता है
बूंदों की मुसलसल चोटों से पत्ता पत्ता थर्राता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
बुलाते हैं हमें बाग़ों में पुर्वा के ख़ुनुक झोंके
छुपा होगा तो उन कुंजों में ये ख़दशे उभरते हैं
रिज़वान सईद
नज़्म
क्या तुम्हें कोई ए'तिराज़ है
उजले दिनों और चाँदनी चमकती रातों की आस मुझे पुर्वा की तरह
शाइस्ता हबीब
नज़्म
ऐ पुर्वा के ठंडे झोंको दिखलाओ न अपनी शान बहुत
हम लोगों की बिपता सुन कर हो जाओगे हैरान बहुत
सलाम संदेलवी
नज़्म
कैसी पुर्वा आज चली है दर्द पुराने जाग उठे
वक़्त की ढलती छाँव में बैठे अपनी गाथा लिखते थे
रिज़्वानुल्लाह
नज़्म
मिट्टी के दरबान का पहरा सिरहाने बिठलाते थे
क्या पुर्वा के ठंडे झोंके उन के देस नहीं जाते
रिज़वान सईद
नज़्म
कहाँ का सावन कहाँ की चतरी कहाँ के दोहे कहाँ की पुर्वा
मैं सात रंगों को किस पे फेंकूँ
शाइस्ता हबीब
नज़्म
पुर्वा के इक झोंके की तरह गुज़री दिल की आबादी से
कलियों को बे-महकाए हुए चल दी हसरत की वादी से
सलाम संदेलवी
नज़्म
कैसी पुर्वा आज चली है दर्द पुराने जाग उठे
वक़्त की ढलती छाँव में बैठे अपनी गाथा लिखते थे