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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिल के सहरा-ए-वफ़ा में है ग़ज़ालों का हुजूम
और उस चाँद के प्याले से छलकती है मिरी प्यास अभी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
इंसान का पियाला समुंदर के प्याले से मिट्टी निकालता है
मिट्टी के साँप बनाता है और भूक पालता है
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
अजीब शय हैं चचा हमारे नहीं किसी की समझ में आए
लिए हैं प्याले में मुर्ग़ छोले उसी में डाली है रस-मलाई
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
कीमिया-गर के प्याले से गिरे क़तरे के पारे की तरह तन्हा
सफ़र करते हुए तारों के झुरमुट में खड़े