आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "qahr"
नज़्म के संबंधित परिणाम "qahr"
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूह क्या होती है इस से उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिल-नशीं हर्फ़ कोई क़हर भरा हर्फ़ कोई
हर्फ़-ए-उल्फ़त कोई दिलदार-ए-नज़र हो जैसे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुफ़लिसी छाँटे उसे क़हर-ओ-ग़ज़ब के वास्ते
जिस का मुखड़ा हो शबिस्तान-ए-तरब के वास्ते
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गुल किया ज़लज़ला-ए-क़हर ने किस घर का चराग़
किस पे ढाया ये सितम किस को दिया हिज्र का दाग़
शकील बदायूनी
नज़्म
क्या क़हर है ज़ालिम बरसातें क्या क़हर है ज़ालिम बरसातें
भीगी दुनिया भीगी साँसें भीगे अरमाँ भीगी रातें
नुशूर वाहिदी
नज़्म
हक़ीक़त ही सही कुछ क़हर-आलूदा भी है... जो उस
की ना-फ़रमाइयों करते हैं उन के वास्ते उस ने
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
ये जब्र-ओ-क़हर नहीं है ये 'इशक़-ओ-मस्ती है
कि जब्र-ओ-क़हर से मुमकिन नहीं जहाँबानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सताने को सता ले आज ज़ालिम जितना जी चाहे
मगर इतना कहे देते हैं फ़र्दा-ए-वतन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
चुपके चुपके साँस लेने से घुटा जाता है दम
रख रहा हूँ बोलते ज़र्रों पे रुक रुक कर क़दम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सियाही बन के छाया शहर पर शैतान का फ़ित्ना
गुनाहों से लिपट कर सो गया इंसान का फ़ित्ना