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नज़्म
ज़लज़ले हैं बिजलियाँ हैं क़हत हैं आलाम हैं
कैसी कैसी दुख़्तरान-ए-मादर-ए-अय्याम हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन की जिंस का है क़ह्त-साल क्यूँ
हैराँ हूँ आज-कल है पड़ा उस का काल क्यूँ
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
काल और क़हत की सेजों को सजाती नहीं मैं
ख़ून मज़दूर का गलियों में बहाती नहीं मैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
मअ'रिफ़त दिल में न अब वो रूह में एहसास है
लोग कहते हैं कि है लेकिन हमें तो यास है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कुछ अंधे कोढ़ी दीवाने आँखों में समाने लगते हैं
कुछ क़हत-ज़दा भूके प्यासे जाँ ख़ामोशी से दे दे कर