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नज़्म
किर्म-ए-फ़रामोशी ने देखो चाट लिए कितने मीसाक़
वो भी हम को रो बैठे हैं चलो हुआ क़र्ज़ा बे-बाक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मोहब्बत अपनी यक-तौरी में दुश्मन है मोहब्बत की
सुख़न माल-ए-मोहब्बत की दुकान-आराई करता है
जौन एलिया
नज़्म
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता