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नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिसे फ़न कहते आए हैं वो है ख़ून-ए-जिगर अपना
मगर ख़ून-ए-जिगर क्या है वो है क़त्ताल-तर अपना
जौन एलिया
नज़्म
सरत गर्दम तोहम क़ानून पेशीं साज़ दह साक़ी
कि ख़ैल-ए-नग़्मा-पर्दाज़ाँ क़तार अंदर क़तार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
करोड़ों क्यूँ नहीं मिल कर फ़िलिस्तीं के लिए लड़ते
दुआ ही से फ़क़त कटती नहीं ज़ंजीर मौलाना