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नज़्म
एक शब तो तब’-ए-मौज़ूँ ने उड़ा दी नींद भी
और दिमाग़ ओ क़ल्ब की रग रग फड़कने लग गई
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
रह-ए-तारीक-ए-ज़लालत में पए ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
शम्अ-सा मज़हर-ए-अनवार गुरु-नानक थे