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नज़्म
मेरा क़िस्सा किसी अफ़साना-ए-दरिया में नहीं
मेरी तारीख़ किसी सफ़्हा-ए-सहरा में नहीं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता
सूरज नारायण मेहर
नज़्म
फिर भी मैं ख़ुश हूँ कि इस कार-गह-ए-दुनिया में
तुम से मिलने के लिए वक़्त ने रस्ता तो दिया