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नज़्म
उस का छुपना था कि आँखों में मिरी कुछ न रहा
सुरमई सब्ज़ मुनव्वर रम-ए-आहू के सिवा
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
इब्न-ए-मरयम भी उठे मूसी-ए-इमराँ भी उठे
राम ओ गौतम भी उठे फ़िरऔन ओ हामाँ भी उठे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस के हर असरार में पिन्हाँ है इक राज़-ए-हयात
दौर-ए-आज़ादी की जिस में हैं हज़ारों कैफ़ियात
टीका राम सुख़न
नज़्म
गामज़न राह-ए-सदाक़त पे अगर हैं हम भी
तो ये नानक पे किसी क़ौम का दावा क्यों हो