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नज़्म
रवाँ आँखों से अश्क-ए-ग़म ब-कसरत है बग़ावत है
नुमायाँ ख़ून-ए-दिल की हालत है बग़ावत है
बशीरुद्दीन राज़
नज़्म
तरक़्क़ी मुनहसिर 'इस्याँ पे है मक़्सूद-ए-फ़ितरत की
तड़पता सीना-हा-ए-शौक़ में राज़-ए-ज़ियाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
दा'वा-ए-उल्फ़त जता कर मुफ़्त में रुस्वा न हो
दार पर चढ़ने से पहले राज़-ए-इश्क़ अफ़्शा न कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गामज़न राह-ए-सदाक़त पे अगर हैं हम भी
तो ये नानक पे किसी क़ौम का दावा क्यों हो
राजकुमार कोरी राज़
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
शरारत का ये नज़्ज़ारा मिरी हैरत का सामाँ था
कि इस पर्दा के अंदर तेरा राज़-ए-इश्क़ उर्यां था
अख़्तर शीरानी
नज़्म
खुला है तुझ पे अभी आह राज़-ए-इश्क़ कहाँ
तू बुल-हवस है, तुझे इम्तियाज़-ए-इश्क़ कहाँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
सब्र की महफ़िल में इक तू ही है लज़्ज़त-आश्ना
ज़ब्त-ए-राज़-ए-इश्क़ में हो जाती है ख़ुद ही फ़ना
साक़िब कानपुरी
नज़्म
उस से पोशीदा नहीं हैं राज़हा-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
तर्जुमाँ है अहल-ए-उल्फ़त का वो सिर्र-ए-दिल-बराँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार