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नज़्म
गुज़र गया ज़माना याद-ए-रफ़्तगाँ लिए हुए
हम इन्क़िलाबियों ने ये जहाँ बचा लिया मगर
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
सो अब वो सब राख बन चुके हैं
मैं रफ़्तगाँ की उदास यादों के साए में दिन गुज़ारता हूँ
असअ'द बदायुनी
नज़्म
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम से किसी का घर न जले
न कोई फिर से हिकायात-ए-रफ़्तगाँ लिक्खे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
नज़्म
जमीलुर्रहमान
नज़्म
जवानी के लिए यादें मैं सू-ए-गुलिस्ताँ आया
बराए अहल-ए-महफ़िल और ब-याद-ए-रफ़्तगाँ आया