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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तेरे नग़्मों में नशात-ए-ज़िंदगी की है महक
कैफ़ से गुल का तबस्सुम ज़िक्र-ए-दिल हुस्न-ए-बुताँ
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
रहबरान-ए-राह-ए-हक़ जब रहबरी फ़रमाते हैं
भूले-भटके सब मुसाफ़िर राह पर आ जाते हैं