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नज़्म
फ़सीह-उल-मुल्क था जान-ए-फ़साहत तेरी बातें थीं
क़यामत जिस पे दम दे वो क़यामत तेरी बातें थीं
मयकश अकबराबादी
नज़्म
कहीं दम घुट रहा है मुस्कुराते सुर्ख़ फूलों का
कहीं कलियों के सीने में हवा रुक रुक के आती है
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
सफ़ीर-ए-लैला ये दास्ताँ है इसी खंडर की
इसी खंडर के तमाश-बीनों फ़रेब-ख़ुर्दों की दास्ताँ है