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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ख़ुद-फ़रेबी में गिरफ़्तार नहीं है 'बिस्मिल'
क्या ये तख़्लीक़ बराए निगह-ए-नाज़ नहीं
बिसमिल देहलवी
नज़्म
सूरत-ए-तस्वीर चुप 'बिस्मिल' हुए ये बोल कर
हुस्न की दुनिया है देखो दीदा-ए-दिल खोल कर
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
आ कन्हैय्या कि तिरे वास्ते हम 'बिस्मिल' हैं
कहने सुनने के लिए दिल है मगर बे-दिल हैं
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है