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नज़्म
तेरा मस्कन अर्ज़-ए-दिल्ली रश्क-ए-हुस्न-ए-कोह-ए-क़ाफ़
चाँद-सूरज रोज़ तेरे गिर्द करते हैं तवाफ़
रहबर जौनपूरी
नज़्म
जहाँ की ज़मीं रश्क-ए-चर्ख़-ए-कुहन है
जहाँ शोख़ियाँ हैं अदा है फबन है
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-पदमनी गहवारा-ए-प्रतापी भीम
रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-ज़माना देखने आया हूँ मैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
वो दुनिया रश्क-ए-फ़िर्दोस-ए-बरीं मा'लूम होती थी
ख़ुदा का शाहकार-ए-बेहतरीं मा'लूम होती थी
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
क़फ़स का दर बना देते हैं रश्क-ए-बाब-ए-आज़ादी
जो अहल-ए-होश हैं 'तकमील' ज़िंदानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
वो रश्क-ए-शम-ए-हिदायात है अंजुमन के लिए
वो मिस्ल-ए-रूह-ए-रवाँ उंसुर-ए-बदन के लिए