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नज़्म
रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
हबीब जालिब
नज़्म
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन दौलत नाती पोता क्या इक कुम्बा काम न आवेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
अकेले रास्ते पे जब मैं खो जाऊँ तो मिलते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
उसी की आँखों से देखती हो
वो अपने रस्ते में दिल बिछाती हुई निगाहों से हँस के कहती