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नज़्म
वाह री जम्हूरियत हम जिन्हें सौंपते हैं मुल्क अपना
उनमें अक़्ल है होशियारी है ताक़त है बस ईमान लापता
माधव अवाना
नज़्म
देख री तेरे सोग में कैसा हाल किया हम ने अपना
दुख के कंकर पत्थर चुनते कोमल हाथ हैं पथराए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
उफ़ री शौहर की चिता पर शोला-अफ़्रोज़ी तिरी
जीते-जी सोज़-ए-मोहब्बत में जिगर-सोज़ी तिरी