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नज़्म
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
न कोई ख़ून का रिश्ता न कोई साथ सदियों का
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
ये इस्तिग़्ना है पानी में निगूँ रखता है साग़र को
तुझे भी चाहिए मिस्ल-ए-हबाब-ए-आबजू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
वो आशिक़ी की ज़बाँ में कहीं भी दर्ज नहीं