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नज़्म
रिश्ता-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तोड़ न देना साथी
वैसे मैं अश्कों से बढ़ कर तुझे देता क्या था
सलाहुद्दीन नय्यर
नज़्म
तभी तो हम ने तोड़ दिया था रिश्ता-ए-शोहरत-ए-आम
तभी तो हम ने छोड़ दिया था शहर-ए-नुमूद-ओ-नाम