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नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
दिल तिरा ज़ख़्मों से बज़्म-ए-आशिक़ी में चूर है
जिस सुख़न को देखिए रिसता हुआ नासूर है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
दिल के हर ज़ख़्म से रिसता है उमीदों का लहू
रेग-ज़ारों ने किया ख़ून-ए-बहाराँ से वुज़ू