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नज़्म
ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़
रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कुछ ऐसा रोब हुआ क़ाएम सब उन के जिलौ में भागे थे
हम जैसे भी उन के मल्बूसात में कच्चे-पक्के धागे थे
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
यूँ रो'ब झाड़ने में वो दिन मगर गया था
इक दिन की बादशाही में किस क़दर मज़ा था
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़्म
लम्बी लम्बी मूँछें रख लें सब पर रो'ब जमाएँ
करते जाएँ मन-मानी और हरगिज़ न घबराएँ