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नज़्म
वो जब हंगाम-ए-रुख़्सत देखती थी मुझ को मुड़ मुड़ कर
तो ख़ुद फ़ितरत के दिल में महशर-ए-जज़्बात होता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये ज़ख़्मी बे-अमाँ मख़्लूक़ हर सू ज़ेर-ए-ख़ंजर है
बता ऐ दिल ये ग़म की रात है या रोज़-ए-महशर है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
''मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था''
मैं भी ग़म-ए-दुनिया का शनावर न हुआ था
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
गर्मी-ए-हंगामा-ए-महशर तिरी महफ़िल में है
सर्द जो होती नहीं वो आग तेरे दिल में है
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
विदा-ए-रोज़-ए-रौशन है गजर शाम-ए-ग़रीबाँ का
चरा-गाहों से पलटे क़ाफ़िले वो बे-ज़बानों के
नज़्म तबातबाई
नज़्म
शिकस्त-ए-पैकर-ए-महसूस ने तोड़ा हिजाब आख़िर
तुलू-ए-सुब्ह-ए-महशर बन के चमका आफ़्ताब आख़िर
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
रोज़-ए-रौशन जा चुका, हैं शाम की तय्यारियाँ
उड़ रही हैं आसमाँ पर ज़ाफ़रानी साड़ियाँ