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नज़्म
कभी रिफ़अ'तों पे लपकीं कभी वुसअ'तों से उलझीं
कभी सोगवार सोएँ कभी नग़्मा-बार जागीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चिड़ियाँ न चहचहाएँ कल सोएँ हम दोपहर तक
बंद है बन का मदरसा कोई हमें जगाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
कैसे सोऊँ मैं निशाँ तक भी न हो जब रात का
मेरी अम्माँ अब तो रातें सारी ग़ाएब हो गईं