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नज़्म
है शायद मुझ को सारी उम्र उस के सेहर में रहना
मगर मेरे ग़रीब अज्दाद ने भी कुछ किया होगा
जौन एलिया
नज़्म
ये सब सही मिरे बचपन की शख़्सियत भी थी एक
वो शख़्सियत कि बहुत शोख़ जिस के थे ख़द-ओ-ख़ाल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
गुज़री बात सदी या पल हो गुज़री बात है नक़्श-बर-आब
ये रूदाद है अपने सफ़र की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मैं एक पत्थर सही मगर हर सवाल का बाज़-गश्त बन कर जवाब दूँगा
मुझे पुकारो मुझे सदा दो
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
'सादी' के तकल्लुम को बिठा क़ल्ब-ओ-नज़र में
दे नग़्मा-ए-'ख़य्याम' को जा क़ल्ब-ओ-नज़र में