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नज़्म
बे-तेरे क्या वहशत हम को, तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी
जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हैं तज़्किरे में कुछ ऐसे नुक़ूश-ए-फ़िक्र-ए-जमील
गुबार-ए-ख़ातिर-ओ-ख़ुतबात की सजें क़िंदील
सईद आरिफ़ी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
तेरी मौजों में है ये किस की सदा-ए-दिल-फ़रेब
गा रही है कौन ये ग़ारतगर-ए-सब्र-ओ-शकेब